जिंदगी की भूख में
जिंदगी की भूख में
आग सी जलती रही है, जिंदगी हर भूख में
हँस के थापेंगे रोटियाँ, जिंदगी की भूख में।
भूख भी कोई प्रश्न है, जैसा मन वैसा ही तन
ओढ़ लेंगें रोटियाँ, जिंदगी की भूख में।
आंतों में छुपाकर भूख को, नींद लेते ही रहेंगें
ओढ़ उम्मीदों की चादर, जिंदगी की भूख में।
कल की फिकर, कल पर ही छोड़कर
आज नारे ओढ़ लेंगें, जिंदगी की भूख में।
हड्डियों ने ओढ़ ली है आज चमड़ी की चादर
आंतें जागती रही हैं, जिंदगी की भूख में।
विरासत की सियासत होती रही भूख में पर
तस्वीर कभी बदली नहीं, जिंदगी की भूख में।
