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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy

"जिंदगी चल रही अपने सफर"

"जिंदगी चल रही अपने सफर"

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यह जिंदगी तो चल रही है, अपने ही सफर

तू चलता, रह कर्म पथ पर बिना किसी डर

मौत की मंजिल तो वैसे भी पायेगा, तू नर

क्यों फिक्र करता, सब मिटेंगे यहां पर घर

आ बैठ चंद पल, भूल जा, भार तू मण भर

जी ले सुकूँ के पल, उम्र वैसे भी रही, गुजर

छोड़ भी दे, व्यर्थ की चिंताओं के तू शहर

सब लोग मौत के ही अमानत है, यहां पर

चलते चलते नहीं उलझ दुनियादारी भँवर

इसमें उलझेगा तो कैसा पायेगा, तू निर्झर

यह मौत भी न जाने कितनी बार गई, गुजर

फिर भी लोग यहां पर न रहे, बिल्कुल सुधर

जिंदगी खोज हेतु जुगनू रोशनी बहुत, नर

पर वो रोशनी भी हमें आये तो सही नजर

जीतना खुद से भागेगा, उतना हारेगा समर

अपनी समस्याओं से तू जी जान से लड़, नर

ये कुछ नही बिगाड़ सकते, अंधेरे निर्लज्ज

तेरे भीतर बसे रोशनियों के कई चराग घर

गर मरना ही है, खुद की रोशनियों मे तू मर

सबको यह वक्त बना देता है, निर्जीव पत्थर

निर्जीव होने से पहले जी ले जिंदगी जी भर

यह जिंदगी तो चल रही है, अपने ही सफर

आखरी मंजिल का स्वागत कर, तू हंसकर



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