जिंदगी बड़ी बेरहम
जिंदगी बड़ी बेरहम
क्या कहूं मैं तुझे ए जिंदगी
तू कितनी है बेरहम
अपनों को ही अपनों के खिलाफ कर
ना करती तू कभी रहम
कभी तो तोड़ने के बजाय जोड़ना सिख ले
अपनों को अपनों से दूर करने वाली
उन गलतफहमी भरी दूरियों को
मिटाना तो सिख लें
है तू जहां जहां
वहां मुश्किलों का है पहाड़
मेहनत चाहे कितनी भी कर लूं
मुश्किलें फिर भी हैं हजार
जिंदगी तू इतना न ढाह मुझपर कहर
की मैं जीना ही छोड़ दूं
लड़ते लड़ते उन मुश्किलों से
कभी मौत न चुन लूं।
