एक सवाल
एक सवाल
एक सवाल मेरा इस समाज से कि
क्या मेरी गलती है
तन तो है पुरुष का
पर मन मेरा है औरत का
चाह मेरी इस बदलाव में ढलने की
फिर मेरे इस फैसले क्यों है एतराज तुम्हें?
चाहे मेरा मन जो
वो करना है मुझे
ईश्वर की इस देन को
तुम क्यों घिन समझते हो?
अपना नाम होकर भी मैं किन्नर हूं
पहचान अपनी होकर भी मैं किन्नर हूं
नाम पहचान होकर भी मुझे किन्नर ही क्यों कहते हो?
क्या दोष है मेरा?
क्या तुम बतला सकते हो?
पर मुझे न दिखता दोष मुुझमें
तुम्हें न दिखती हो खुबसूरती मुुझमेंं
क्योकिं तुम खुबसूरती की परिभाषा से परे हो
फिर भी है मेरा सवाल तुुुमसे
क्या तुम इसका जवाब दे सकते हो??