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Komal Kamble

Tragedy

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Komal Kamble

Tragedy

एक शहर

एक शहर

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एक शहर वो मेरा था

जो सपनों, खुशियों से भरा था

जिंदगी से ना थी कोई शिकायत

और ना ही कुछ बिछडा था


उस शहर में मेरे अचानक

एक दिन ऐसा आया

जो कभी खिला हुआ था शहर

पल भर में ही उजड़ गया


जिस्म को मेेेरे नोंचता देख

रूह मेरी तड़प उठी

दर्द इतना था खामोशी में कि

रूह की चीख से मेेेरी

शहर उस हर गली दहल उठी


कभी मेरे इस शहर में

खुशियों की मुुुुस्कुराहट थी

उस मंजर के बाद अब

रह गई है दर्द की मूर्ती ही!


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