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Komal Kamble

Abstract

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Komal Kamble

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मौत

मौत

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मौत तेरा ठिकाना ना कोई

तू हमेशा से ही अपनों को

अपनों से दूर कराती आई है

जीना चाहता है हर शख्स

पर सामने न तेरे चलता बस कोई


क्या कहूं मैं तुझे

जो जिस्मों से सांसें छीनकर

तू रुह को जो देती है

अधूरे होते हैं किस किसी के सपने

पर तू उन्हें पूरा न होने देती है


माना कि तू मौत है

पर किसी के ख्वाइशों का गला न घोंटना

वरना एक दिन तुुझे ही मिटाएगा

बद्दुआओं का वो पन्ना


क्या लगता है तुझे

तुझपर बद्दुआओं का असर न होगा

फिर तो मैं कहना चाहता हूं कि

यह तो तेरी गलत फहमी है

क्योंकि आज भी तेरे आने पर लोग रोते हैं!



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