मौत
मौत
मौत तेरा ठिकाना ना कोई
तू हमेशा से ही अपनों को
अपनों से दूर कराती आई है
जीना चाहता है हर शख्स
पर सामने न तेरे चलता बस कोई
क्या कहूं मैं तुझे
जो जिस्मों से सांसें छीनकर
तू रुह को जो देती है
अधूरे होते हैं किस किसी के सपने
पर तू उन्हें पूरा न होने देती है
माना कि तू मौत है
पर किसी के ख्वाइशों का गला न घोंटना
वरना एक दिन तुुझे ही मिटाएगा
बद्दुआओं का वो पन्ना
क्या लगता है तुझे
तुझपर बद्दुआओं का असर न होगा
फिर तो मैं कहना चाहता हूं कि
यह तो तेरी गलत फहमी है
क्योंकि आज भी तेरे आने पर लोग रोते हैं!