जिन्देगी जी लो....
जिन्देगी जी लो....
कितने साल बीत गये जी भरके हँसे तो नहीं
कितने सावन आकर चले गये ये पता नहीं
आँगन मे देखो फूल खिलते है कोई रोका नहीं
कलियों ने भी साथ है अभी देखो साथ छोड़ा नहीं
पता है उन्हें, कुछ पल की बात है जी भरा नहीं
खिलने दो फूलों को, अभी से आगे का सोचना नहीं
फूल भी देखो खिलके मुरछा जाता, रुकता नहीं
भमरों को वो खिंचती पर वो उसका भूल नहीं
खुसबू भी वो फैलाता, उसमे उसकी भूल नहीं
कुछ पल की जिन्देगी को जीना तो कभी छोड़ा नहीं
ना फूलों की कोई भूल पर हसना तो छोड़ा नहीं
उसकी कांटे चूकते,पर वो फूल की दोष नहीं
फिर भी उसको तोडना माली तो कभी छोड़ा नहीं
लाखों कमियां चाहे ढूंढ लो जीना कभी छोड़ा नहीं
कली थी मे फूल हुई, इसमें मेरी तो दोष नहीं
कितने पागल भामरे घूमते, मेरी भूल नहीं
सुंदरता की खुसबू फैलता, मेरी कसूर नहीं
तुम भी हसा करते थे, क्या तुम्हे ये भी याद नहीं
मेरी हसीं मेरी अदा के मरते थे मे भुली नहीं
कितनो से लढ़ते थे जानती हूँ, कभी कही नहीं
कहेते थे, जिन्देगी जी लो, ये दिल अभी भरा नहीं
हम तो तुम पे यकीन की, जिन्देगी जी लो पे नहीं
माना ना तुम्हारा ना मेरी कोई कुछ कसूर नहीं
ज़माने की ये आदत है, उसका कोई दोस नहीं
जिन्देगी जी लो मिला है, कल की तो कुछ पता नहीं
मुझे भी देखो तुम जरा, मनाना कभी आती नहीं
साथ छोड़ना चाहो तो कमिया बहुत है मुझमे
पर साथ निभाना चाहो तो खूबियां भी कम नहीं।

