जीवन सफर
जीवन सफर
मेरी अपनी की किस्मत मेहरबान है
पर पड़ोसी की नज़रें परेशान हैं
मुझ को जो कुछ मिला मैं तो खुश था बहुत
इस में कुछ न किसी का भी नुकसान है
जब भी गम थे मिले मुझ को दुःख था बहुत
अब तलक सूखे अश्कों के निशान हैं
था अँधेरा घना और न ही जुगनू मिले
फिर भी कम न हुए मेरे अरमान हैं
मेरी हर राह पर सिर्फ कांटे ही थे
पाँव पर छालों के दिखते निशाँ हैं
मुझ को खुद पर भरोसा सदा ही रहा
मील का हर पत्थर भी हैरान है
अपनी मंज़िल पर दिखता हूँ तन्हा मगर
क्यों यही अब बनी मेरी पहचान है।