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Mukesh Nirula

Others

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Mukesh Nirula

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बस एक चुप सी लगी है

बस एक चुप सी लगी है

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हम तो तन्हा रहे थे, मगर उदास नहीं जिस से भी तन को ढका था, वो था लिबास नहीं 

जो भी मिले मुझ को, कुछ पल रहे संग में जब भी ढूँढा उन्हें था , दिखे वो पास नहीं

सहरा में चलते हुए, मृगजल मिला मुझ को हम ने अश्क़ पिये थे, बुझी थी प्यास नहीं

गम ही थे सहते रहे, अश्क़ थे बहते रहे खुशियाँ मिली थी कम ही, है अब तो आस नहीं

अक्सर घिरे गैरों में, अपने नज़र कम आए मर कर जो भी थे पाए, वो भी थे ख़ास नहीं!


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