दस्तूर
दस्तूर
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रस्म जो भी है उस को तो, निभाना होगा
वरना इल्ज़ाम लगाने को, ज़माना होगा
वो जो रूठे हैं उन को भी, मनाना होगा
वरना हर लम्हा तन्हा ही, बिताना होगा
बहुत ही दूर किनारा, दिखा है कश्ती से
हौसला कर के पतवार, उठाना होगा
जाने किस मोड़ पे दिख जाए, अँधेरा फिर से
चाह मंज़िल की है तो दीपक भी, जलाना होगा
जब तलक साँस है, धड़कन सुनाई देती है
ज़िंदा रहने का हर इक दस्तूर, निभाना होग।