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Dr. Vijay Laxmi

Romance

4.5  

Dr. Vijay Laxmi

Romance

जीवन नीड़

जीवन नीड़

1 min
263


दो हंस मिले संग होके चले 

सरोवर के किनारे को,

लगे प्यास बुझाने को ।


उड़ रहे बाजे जग पंजों से स्वच्छंद बनाने अपने को ।

हिय आस रही पल वर्षों से साकार बनाने सपने को ।

हिय चमन भला कब तक उजड़े चले फिर से बसाने को 


दो हंस मिले संग होके चले 

सरोवर के किनारे को,

लगे प्यास बुझाने को ।


कजरारे इन नेत्रों से प्रिये है हाल लिखा इस जीवन का ।

बिखरे कुंतल कहते गाथा जग क्रूर कुटिल आया तन का ।

बसे क्यों कर हम इस जगती पर निज काया जलाने को।


दो हंस मिले संग होके चले 

सरोवर के किनारे को,

लगे प्यास बुझाने को ।


अनुराग भरा है नीर प्रिये इस बहते उमड़ते सागर में । 

हर एक पार न पा सकता अंगार भरे इस चादर का ।

मिलजुल कर हम चलते ही रहे निज धर्म ध्वजा फहराने को। 

गति राग सुनाने को ।


दो हंस मिले संग होके चले 

सरोवर के किनारे को,

लगे प्यास बुझाने को ।



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