जीवन नीड़
जीवन नीड़
दो हंस मिले संग होके चले
सरोवर के किनारे को,
लगे प्यास बुझाने को ।
उड़ रहे बाजे जग पंजों से स्वच्छंद बनाने अपने को ।
हिय आस रही पल वर्षों से साकार बनाने सपने को ।
हिय चमन भला कब तक उजड़े चले फिर से बसाने को
दो हंस मिले संग होके चले
सरोवर के किनारे को,
लगे प्यास बुझाने को ।
कजरारे इन नेत्रों से प्रिये है हाल लिखा इस जीवन का ।
बिखरे कुंतल कहते गाथा जग क्रूर कुटिल आया तन का ।
बसे क्यों कर हम इस जगती पर निज काया जलाने को।
दो हंस मिले संग होके चले
सरोवर के किनारे को,
लगे प्यास बुझाने को ।
अनुराग भरा है नीर प्रिये इस बहते उमड़ते सागर में ।
हर एक पार न पा सकता अंगार भरे इस चादर का ।
मिलजुल कर हम चलते ही रहे निज धर्म ध्वजा फहराने को।
गति राग सुनाने को ।
दो हंस मिले संग होके चले
सरोवर के किनारे को,
लगे प्यास बुझाने को ।