जीवन मेरा गंगा घाट सा
जीवन मेरा गंगा घाट सा
जीवन ये मेरा गंगा घाट सा,
जितना सन्नाटा उतना शोर भी है,
यहाँ साधु, बैरागी और चोर भी हैं,
कहीं तरलता, कहीं तरसते छोर भी हैं।
कभी कठोर, कभी नर्म कोर भी है,
कभी निर्मम, कभी भाव विभोर भी है,
कभी निर्भीक, कभी कमज़ोर भी है,
कहीं ग्लानि से सराबोर भी है।
उगता सूरज, अंधियारा घनघोर भी है,
लहरों में डूबता उभरता हर बार सा,
जीवन ये मेरा गंगा घाट सा।
