खुद से दूर हुए
खुद से दूर हुए
अंजाने सारे चेहरे, अब प्यार जताने लग गए,
हम खुद से थोड़ा दूर हुए और सबको भाने लग गए।
इसकी बातें, उसकी यादें, दूजों के सब किस्से हैं
हर्फ़-बा-हर्फ़, शख्स-बा-शख्स, मिलते अपने ही हिस्से हैं।
एक शोर से थे दूर भागे, एक आंधी में बह जाने को
खामोश हुए हर रोज़ मगर, हर रोज़ खामोशी कह जाने को।
जहाँ बस्ती बस्ती दुश्वारी हो, वो राह बुलाती है दूर से
जहाँ कदम कदम रुसवाई हो, ऐसी मोहब्बत हो गई भूल से।
आबादी के शहर में, खानाबदोश ही फिरते हैं
हम दीवानों से कम नहीं, खुद अपनी बर्बादी लिखते हैं।
इसी बेहयाई की आग में, जब शब्दों को झुलसाएंगे
तब आंसुओं की राख से, अपनी कहानी लिख पाएंगे।
रातों की नींद के भाव, ख्वाब देखे जाएंगे
मशाल होंगी यादें जिनमें मलाल सेंके जाएंगे।
एक रोज़ मेरी शायरी के, वो लफ्ज़ आँखों से गरज़ आएंगे
तुम ओढ़ लोगे मेरा हर दर्द, हर्फ़-ए-हिज़ाब जब समझ आएंगे।
जिस्म की तकलीफों को, रूह के किनारे रख गए,
हम खुद से थोड़ा दूर हुए और सबको भाने लग गए।