मुस्कराती हूँ मैं
मुस्कराती हूँ मैं
मैंने जाना है
जितनी लोगो से ईमानदार रही
उतनी ही उपेक्षित रही।
हर आहट पर मैं
उम्मीद किया करती
पर अपनी गहरी सांस मिली।
हर विदाई पर मैं
मन को थामती रहती,
पर साथ सूनी बस आस चली।
कलि बिना शोर आया
आते ही बोला बिना मिलावट
स्वर्णाभूषण कैसे बनेंगे?
विचित्र उत्तर सजा कर
वह एक व्यवहारिक सूरज
उगा गया मुझमे।
अब विदाई की आहट पर
जाते हुए हमेशा मुस्कराती हूँ मैं।