जीवन क्या है?
जीवन क्या है?
सच पूछो तो आखिर जीवन है क्या?
क्या बस एक उद्देश्य है कुछ पाने का!
या अपने कर्तव्य से दिल लगाने का,
या फिर बिना किसी मतिभ्रम के…,
सन्मार्ग की ओर चलते चले जाने का!
स्पष्ट रूप में कुछ समझना मुश्किल है,
अपने जीवन के लक्ष्य रुपी चक्रव्यूह को,
क्यूंकि अंततः ख़ुश तो कोई भी नहीं,
न जाने सब कुछ पा लेने के बाद भी,
हर शख्स ढूँढ रहा कुछ पल का सुकून,
ये पैसा शोहरत सब यहीं धरा रह जाता है
कब इनमें कोई सवालों के जवाब पाता है
उम्मीदें भी शायद साथ छोड़ देती हैं,
हर वक्तव्य भी क्यों निरर्थक लगता हैं
शून्य में जाने लगती हैं मन की भावनाएं
दम तोड़ने लगती हैं अपनी संवेदनाएं
नज़र पारदर्शी और बली होता पूर्वाभास
बिना वजह के दम भरते नए आभास
किस रास्ते को अख्तियार कर लेते हैं हम
फलते-फूलते जीवन में अचानक से..!
क्यों अपने एहसास तोड़ने लगते हैं दम?
ये वीरानी जीवन की स्वयं जनित ही तो है
एक धुंध की सी चादर ओढ़े हैं अंतर्मन
सवाल पर सवाल आते हैं ज़िन्दगी के
बस एक अदने से अर्थ की चाहत में
एक अजनबी की तरह हाथ थाम लो इसका
ये खुद ब खुद समझ में आने लग जायेगी
