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Dr.Narendra kumar verma

Fantasy

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Dr.Narendra kumar verma

Fantasy

"जीवन का हंसी खेल"

"जीवन का हंसी खेल"

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खेल-खेल में खेल गए खुशी,

बचपन की हिचकोली, रातों का क्रंदन,

मीठी सी लोरी, बांहों का बंधन,

माँ की ममता ओर खिलौनों का स्वर!

स्कूल के पहाड़े ओर जन-गण-मन,

बागों की हरियाली, क्रीड़ा करता यौवन,

हंसी ओर ठिठोली, सतरंगी सावन,

मोहक करती मुस्कान, सपनों की फैंटसी!

बंधनो का प्यार, अपनापन ओर संसार,

फुरसत के पल, नौकरी की अवराधना,

ख्वाबों का बिस्तर, लाठी की चहल,

खेले जीवन मे हर पल, कभी मंद कभी प्रखर!


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