STORYMIRROR

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Fantasy

4  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Fantasy

नदी के किनारे

नदी के किनारे

2 mins
333

सुनो, 

अकेली ना जाओ 

नदी के किनारे 

बड़े तेज होते हैं 

इसके धारे 

कहीं पैर फिसल गया तो 

फिर तुम क्या करोगे 

ये नदी का पानी 

तुमसे जलता है 

तुम्हारी पनीली आंखों से 

रश्क रखता है 

ये रवि की किरणें 

तुमसे जलकर 

टेढ़ी टेढ़ी चलने लगी हैं 

जिससे तुम्हारी कंचन काया 

अब झुलसने लगी है 

नदी के ऊपर घिर आई 

घटाओं से चुराकर 

थोड़ा सा काजल 

कहो तो आंखों में लगा दूं 

इन रेशमी गेसुओं से चिपकी 

बूंदों को अधरों से मिटा दूं 

अगर इजाजत दो तो 

आंचल की ओट से रसीले लबों की 

थोड़ी सी लाली चुरा लूं 

खिलती सी मुस्कुराहट से 

कोई कहानी बना दूं 

देखो, 

मौसम थोड़ा बेईमान हो रहा है

हवा भी आंचल उड़ा रही है 

वो आसमां में एक काली बदली 

गरज गरज कर कैसे डरा रही है 

अगर कोई गुलाब आगे बढ़ के

तुम्हारा रास्ता रोक लेगा 

तो तुम क्या करोगे 

अपने कांटों से तुम्हें छेद देगा 

तो तुम क्या करोगे 

ये सुरमई शाम का अंधेरा 

तुमसे लिपट जाएगा 

हजार मिन्नतें करेगा 

वफा की दुहाई देगा

तो तुम क्या करोगे 

ये मखमली घास 

तुम्हारे कदम रोक लेगी 

तो तुम क्या करोगे 

नादान ना बनो 

मेरी बात मानो 

तुम्हें मेरी जरूरत पड़ेगी 

तू अकेली नारी 

किस किस से 

कब तक लड़ेगी 

घटाओं से तुम्हें बचा लूंगा 

कांटों से दामन छुड़ा लूंगा 

तुमको तुम्ही से चुराकर 

अपने दिल में बसा लूंगा 

फिर दोनों मिलकर 

डटकर मुकाबला करेंगे 

नदी के निर्मल जल में 

नाव से सैर करेंगे 

अठखेलियां करेंगे 

शीतल जल से

और भिगो देंगे एक दूसरे को 

प्यार की बरसात से। 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance