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Shahwaiz Khan

Tragedy Fantasy

4  

Shahwaiz Khan

Tragedy Fantasy

सवाल

सवाल

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सवालों के उलझे हुए जालों से निकलकर

जब में आकाश में उड़ते परिदों को देखता हूं

तो सोच में पड़ जाता हूं

वो कौन था जिसने 

जमीं पर खीच कर कुछ लकीरें

नाम मुल्कों के लिख कर चला गया


वो कौन थे जो सफ़ेद सी चादरों पे

बैठे हुए लिख गये है

नये जिदगीनामें 

तेरे लिए ये सही

मेरे लिए ये सही


वो कौन थे जो जिनकी नजरें आसमाँ से जुदा रही

कितने सैन्य सिपाही लड़ते लड़ते मर खप गए खुनी जंगों में

जीत के जाम हाथों में लिए कितने जनरल

ताउम्र जिनके हमराह मुर्दा सुगंध साथ रही

हारी हुई बिसात को पलटकर जब देखता हूं

कहाँ से जीत फिसली थी और चिंगारी को हवा लगी थी

सारे सवालो के जवाबों से लबरेज़ किताबें

खामोशा कैसे ज़िंदा है


आग को लपेटे हुए पिघली हुई नफरतो के लावें

जमते क्यूँ नही

वरक दर वरक सदियों के राज़ चुभते क्यूँ नही

बैसाखता मौहब्बतों के नग्मों में रची

गजलों में जिनके नामों के अशआर लिखे गए


वो लोग भी थे जिन्हें

ज़िंदगी ने मुहब्बत के सिवा और कुछ ना करने दिया

और कुछ दुनिया को सजाने बनाने मे गुजर गए

अभी और भी अँधेरे है

अभी और भी उजालें है


सवालों में सवाल कितने है

जवाबों के लाले है

है बहुत जाम हर कहीं

और कितने तिशना लबो पर जाले है

रवा दवा है एक भीड़ शहरें रफ़तार में और

कितने सन्नाटे ज़िंदगी में ख़ामोश बसर लोग तन्हाँ है


ये माजरा ए दुनियाँ कब किसकी और कौन है जो

इसे समझा है

जवाब किसी के पास नहीं

और फिर सवाल भी अधूरा है

जब वो नही समझ सके ऐ दिल...तू क्या समझ पायेगा

छोड़ कागज क़लम और दुनियाँ को देख

जाने कब तू भी तारीख बन जायेगा।


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