झूठे ईमान..!
झूठे ईमान..!
तेरी बंदूके
आग उगलती हैं
बेकसूरों
मासूमों का कत्ल करती है,
इंसान वो भी हैं
और तू भी...!
वो बस सहते हैं
तेरे सितम
जन्म से आखिरी गोली तक,
उनके रूदन
वो अनसुनी कराहें
दब जाती हैं
तेरे आतंक के शोर में..!
और तू
बस ख्याली जिंदगी में मशगूल
सपने बुनता है
जन्नत की
रंगीन फिजाओं के
सिर्फ
अपने झूठे ईमान के लिए...!