झूठ
झूठ
जब छोटी थी
तो किसी को
देखा झूठ बोलने से
डाँट से बच जाते हैं
फिर क्या था।
मुझे भी लग चुका था
झूठबोलने का शौक
जिसमें होने लगी
मेरी मौज
कुछ भी करो
बताना किसे हैं।
जो करना है
करो
किसी से नहीं डरो
पर क्या पता था।
कि ये अंजान सफर
आपको किसी मुसीबत
की ओर ले जाता है
जिससे बचाने वाला
सिर्फ आपका परिवार
होता है।
जिससे हम सब कुछ
छिपाते हैं।