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Ratna Kaul Bhardwaj

Tragedy

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Ratna Kaul Bhardwaj

Tragedy

झुर्रियों वाला हाथ

झुर्रियों वाला हाथ

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शीर्षक: झुर्रियों वाला हाथ

हाथ न छोड़ना वह झुर्रियों वाला
वही तो सहारा था पहले कदम का
आज वह हाथ कांपता है जरूर
पर जन्म दाता हैं अपने जन्म का

कुछ सुलझा सा , कुछ उलझा सा
फिर भी कितनों का ही सहारा था
विधाता की विधि है समझ से परे
वही शरीर जर्जर और सहारे का भूखा

कल जो एक सुडौल बदन था
चेहरे पर आज थोड़ा पीलापन है
समय चक्र संग दौड़ते भागते
आज चाल में उसकी ढीलापन है

कुछ सुस्तापन, कुछ बहरापन
धुंधलापन भी, उससे खूब सताता है
आलस, बेकरारी, चिड़चिड़ापन
सच मानो, इसे बड़ा रुलाता है

निहारते रहता दर ओ दीवारों को
याद करते होंगे भीती हुई रवानियां
घर की हर एक ईंट के पीछे
छुपी होंगी जाने कितनी कहानियां

अब हक कम डर ज्यादा झलकता है
ढूंढते रहते हैं कुछ खाली आंखों से
गुज़रे वक्त के अनगिनत नज़ारे
गुज़रते होंगे आंखों के झरोखों से

मत समझना उसका बदला स्वभाव
हमारे आड़े अक्सर आ जाता है
उसकी व्यथा जब समझ आती है
अपना मन भी कहां सुख पाता है

असहाय नहीं,यह हक है उसका
उसकी बदौलत ही हमारा "आज" है
वह कर्म अपना खूब निभा चुके है
सहारा बनें उसका,उत्तम यह काज है

घर की दीवारों की हर ईंट सदा दे
बोले," लौटा दे इन्हें इनकी जवानी
समय का चक्र इन्हें विवश कर गया
याद कर इनके बलिदान बेशकीमती

इनका बुलंद हौसला, इनका सहारा
पार करा गया कितनी आंधियों को
आज एक कंधा इन्हें भी चाहिए
मात दे सके उम्र की कंपकंपियों को

इनके हाथों के प्यार भरे झूले ने
अपना "आज" सुरक्षित कर दिया था
इनके निस्वार्थ मेहनत और पसीने ने
अपने हौसले का घड़ा भर दिया था

झुरियां जिस घर में आनंदित है
वह घर मंदिर से कोई कम नहीं
वृद्ध आश्रम हमारी संस्कृति नहीं
पश्चिमी सभ्यता में कोई दम नहीं

बुज़ुर्ग हमारी संस्कृति की धरोहर है
इनका संग ईश्वर की सबसे बड़ी देन है
गर भीता हुआ कल इनका फ़र्ज़ था
इनका आज संवारे हम, इसमें ही चैन है....

✍️ रतना कौल भारद्वाज ✍️


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