जहर
जहर
नही रहना मुझे अब
इन पागलों के बस्ती में
जहां हर शख्स
छोड़ अपनी पहचान
निभाने को है आतुर
मेरा (जहर का) ही किरदार
कितना बेज्जती भरा काम था
ले लेना जान किसी का
और रोते रहना दिन रात
देख पीड़ितों का दर्द
पर वह भी महफूज
नहीं छोड़ा इंसानों ने
और कर दिया बेकदर बेदखल
मेरे हिस्से के काम से
देख अपनी दुर्दशा
सोचता हूं
मैं हीं कह दूं अलविदा
पर सवाल है
क्या तलाशूं मैं
अपनी खुदकुशी के लिए।