जहाँ बस मैं हूँ और तू हो
जहाँ बस मैं हूँ और तू हो
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कुछ पल तो ऐसे ढूंढ कर
ला दे मुझे ऐ ज़िन्दगी
जहाँ बस मैं हूँ और तू हो
खुले आसमान के नीचे
दोनों घूमें आँखें मीचे
कुछ मैं सुनूँ तेरी कुछ
तू मेरी सुने
ओढ़ के कभी सुनहरे
सूरज की किरणें
कभी हरियाली की छांव में
इक साथ चलें मैं और तू
सुबह की गीली घास पर
ओस दबा कर पाँव में
ना कोई ग़म की
आँख मिचोली हो
बस हम दोनों की
हँसी ठिठोली हो
ना किसी की पहरेदारी हो
ना कोई भी जिम्मेवारी हो
थाम के हाथ मेरा ले चल
दूर वादियों में कहीं
ऐसी किसी जगह पर
जहाँ मिलूँ तुझे मैं
और तू मुझे मिलेगी
कुछ पल तो ऐसे ढूंढ कर
ला दे मुझे ऐ ज़िन्दगी ।