जबसे ब्याहकर आई
जबसे ब्याहकर आई
जबसे ब्याहकर ससुराल आई,
मैं सपने देखना भूल गई !
खुरदरे हुए मेरे हाथ और,
ना जाने क्या- क्या भूल गयी !
तन भूली अपना मन भूली,
सखियों का अपनापन भूली !
कुछ भी तो सखि अब याद नहीं,
अनजाने, क्या- क्या भूल गयी !
मैं सपने देखना भूल गयी,
विरहन दादुर-मोर सतावैंली !
सभी कंत की याद दिलावैं !
पुहुप बटोरन बगिया की कली !
चुहुल करें सब अलि-कली -नयी,
मैं सपने देखना भूल गयी !
नयना जैसे - बादल बरसाऍं,
दिवस- रैन गिन-गिन झूल गई !
लिये परीक्षण दुख ने इतने,
ना जाने कितने सारे भूल गयी !
स्वप्न कथन मैं करूँ क्या सजनी !
फड़के वाम-अंग, रजनी चली गई !
ढुलकत -पुलकत अंग सखी री,
मिलन -घड़ी सब सुधि भूल गयी !
दरवाजे तक आकर पछताए होंगे
भोर और जीवन संध्या भूल गयी !