जब से पीये हैं
जब से पीये हैं


जब से पीये हैं
मोहब्बत की शराब।
यारों इश्क में
डूबे रहना, मुझे आ गया।
कहे भी तो, किससे कितना
अफ़साने हैं बहुत।
जुबां बंद रख, नज़रों से
गुफ्तगू करना, मुझे आ गया।
मुसर्रत हैं कम
दुख हैं बेहिसाब।
खुदकुशी करते, देख उनको
जिंदा रहना मुझे आ गया।
पथरीली पगडंडियाँ
कांटों भरे रास्ते।
उलफ़त की राह पे चलते
उनका महबूब बनना,
मुझे आ गया।
दिल में नाकामी लेकर भी
लबों पर मुस्कुराहट,
लाते हैं वो।
उनके सुखन की हँसी
बनना मुझे आ गया।
मोहब्बत तो है,ज़माने
में खुदा की इबादत।
हैवानों के जहाँ में,
इंसा होने का सबब,
मुझे आ गया।