जैसी भूख वैसा नशा
जैसी भूख वैसा नशा
हैवानियत बढ़ती रही
जिस्म का नशा चढ़ रहा था
हवस की भूख ही समझो और
भूख सिर्फ बढ़ता ही जा रहा था
किसी को दौलत का नशा था
काम वो करता ही जा रहा था
गलत सही का फर्क भूला समझो
पर पैसा तो बढ़ता ही जा रहा था
किसी को चाहत का नशा था
प्यार वो करता ही जा रहा था
धोखा तो पता ही नहीं था समझो
किसी बेवफा पे मरता ही जा रहा था
कहीं गरीबी तो कहीं अमीरी की भूख
कहीं जिस्म, दौलत, प्यार का नशा
जिसकी जैसी भूख है
वैसा ही उसका नशा है
बस इसी तरह जिंदगी में
हर इंसान फंसा है