सारे राज खोल गया
सारे राज खोल गया
कुछ उलझी पहेलियां सुलझने लगीं,
दबी राख में चिंगारी सुलगने लगी।
कभी सोचती कि कुछ बेहतर क्यों नहीं?
कभी समझा, इससे बेहतरीन कुछ भी नहीं!
कुछ खुल गए और कुछ राज साथ ले गया
ये साल जाते-जाते एक ताज दे गया।
उस ताज को सिर पर सजाकर रखतीं हूं,
पैरों में बेड़ियों को बजाकर चलतीं हूं।
कभी पुराने ख्वाब खुद तोड़ देती हूं तो
कभी खुद को नए ख्वाबों से जोड़ लेती हूं।
और एक नए मंच का आगाज दे गया,
ये साल जाते-जाते तालियों की आवाज दे गया।
कभी खुद ही कहानियों में तालियां बजाती हूं,
कभी कविताओं पर लोगों से तालियां बजवाती हूं।
हर साल की तरह इस साल भी खिताब दे गया,
ये साल जाते-जाते एक नया किताब दे गया।
कुछ साल पहले कुछ मांगा था 2024 में,
कब मिलेगा, पूछा तो 2025 बोल गया।
और इसी तरह
ये साल जाते-जाते सारे राज खोल गया।
