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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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जैसा करोगे,वैसा भरोगे

जैसा करोगे,वैसा भरोगे

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जैसा करोगे, वैसा भरोगे

यह बात कब समझोगे

यदि तुम बबूल बोओगे 

तुम बबूल ही काटोगे

यदि आम्र को बोओगे 

तुम आम्र ही काटोगे

सीधी सी तो गणित है 

अच्छा व्यवहार करोगे

अच्छा व्यवहार पाओगे 

जैसा करोगे वैसा भरोगे

यह बात कब समझोगे


किसी की निंदा करोगे 

खुद की निंदा पाओगे

किसी की प्रशंसा करोगे 

खुद की प्रशंसा पाओगे

विधि का भी नियम है 

जैसा कर्म तुम करोगे

वैसा फल तुम पाओगे

किसी का घर जलाओगे 

अपना घर जलता पाओगे

जैसा करोगे वैसा भरोगे 

यह बात कब समझोगे

प्रकृति का यही नियम है


जैसी आप दुआ करोगे 

अपने लिए वैसी पाओगे

जितनी नेकी आप करोगे 

उतना ही करिश्मा पाओगे

जितनी बेईमानी करोगे 

उतनी लोगों से पाओगे

इसलिये कहता है, साखी 

सुनो बात सब यह,सांची 

अच्छा करो, अच्छा करो 

अच्छा ही अच्छा पाओगे

किसी का तुम बुरा करोगे 

बुरा ही बुरा तुम पाओगे

रामजी किसे मारते नहीं है, 

रामजी किसे डांटते नहीं है

जितना खोटे कर्म करोगे 

उतना ही मरते जाओगे

जितना मन साफ रखोगे 

उतना ईश्वर पास पाओगे

जैसा करोगे वैसा भरोगे 

यह बात कब समझोगे


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