जातिवाद का जहर
जातिवाद का जहर
जातिवादी जहर से है ,
विकृत मानवता हुई।
स्वार्थ मे डूबे सभी ,
सबकी समस्या अनछुई।
याद कर स्वर्णिम समय वो ,
जब सभी हम आर्य थे।
भ्रातृत्व की थी भावना ,
इच्छित सभी के कार्य थे।
एक सीमित सोच ने अरु,
मनुज के इस दम्भ ने ।
घोल दी नफरत दिलो मे,
द्वेष अरु पाखण्ड ने।
नीद से जागो सभी ,
निज सोच कुत्सित त्याग दो।
बन्धुत्व के इस दायरे को ,
और ज्यादा माप दो।
