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Pankaj Prabhat

Tragedy

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Pankaj Prabhat

Tragedy

जाने क्या????

जाने क्या????

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जाने क्या ढूँढ़ती रहती हैं, मेरी आँखें मुझमें,

राख के ढेर में सिर्फ धुँआ है या चिंगारी है।

कबकी दफ्न हो चुकी मेरी हसरत मुझमें,

अब तो इस काया के जलने की बारी है।

जाने क्या ढूँढ़ती रहती हैं, मेरी आँखें मुझमें,

राख के ढेर में सिर्फ धुँआ है या चिंगारी है।


हौसले बहुत हैं मगर, अब रास्ते नही मिलते,

रास्तों के आस में, दिल में सिर्फ बेकरारी है।

हर साँस फलक तक, एक दुआ लेकर जाती है,

लौटती साँस में सिर्फ, एक अज़ीब इन्तेज़ारी है।

जाने क्या ढूँढ़ती रहती हैं, मेरी आँखें मुझमें,

राख के ढेर में सिर्फ धुँआ है या चिंगारी है।


मेरी ख्वाहिशें अब खेल रही है मुझसे ऐसे, जैसे,

ये मन मेरा, हसरतों के आंगन की ज़मींदारी है।

हर बार काँच का सपना, आँखों में ही फूट गया,

फिर भी ख्वाबों को संजोना, इनकी लाचारी है।

जाने क्या ढूँढ़ती रहती हैं, मेरी आँखें मुझमें,

राख के ढेर में सिर्फ धुँआ है या चिंगारी है।


आरज़ू जुर्म, हसरत पाप, तमन्ना है गुनाह,

ये दुनिया एक अजीब सी जागीरदारी है।

यहाँ बाजारों में अब, बिक रहे है भगवान,

हम इंसानो की जाने, अब किसपर ज़िम्मेदारी है।

जाने क्या ढूँढ़ती रहती हैं, मेरी आँखें मुझमें,

राख के ढेर में सिर्फ धुँआ है या चिंगारी है।


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