जाने कहाँ गई ?
जाने कहाँ गई ?
जाने कहाँ गई ?
अब वो कहानी,
होती थी जिसमें
परियाँ, राजा और रानी।
दादी किस्से थी, जिनके सुनाती
और कहती थी नानी जिन्हें
अपनी जुबानी...,
जाने कहाँ गई ?
अब वो लोरी,
जिसमें होते थे,
सूरज,चंदा और चाँद चकोरी।
झट से आ जाती थी निंदिया
सुन कर वही गीत पुराना
लल्ला-लल्ला लोरी
दूध की कटोरी...,
जाने कहाँ गए ?
अब वो खिलौने,
झूनझूना, भोंपू,
चाबी वाला बंदर
गाड़ी और' चिड़िया,
जो होते थे चंद पैसों के,
पर जो लगते थे बड़े ही
सुंदर और मनमोहने...,
जाने कहाँ गए ?
अब वो किस्से,
बच्चे हिम्मत पाते थे जिससे
कभी शूरवीरों, कभी ईश्वर के
कभी दादा पड़-दादाओं के
बारी-बारी जो आते थे
हिस्से...
कहानी अब खुद ही
कहानी हो गई
लोरी भी अब कहीं सो गई
खिलौने हो बैठे खुद ही खिलौने
किस्से भी अब कहीं लगे हैं खोने,
शायद...
अब वक्त काफी बदल रहा है
बचपन, बचपन में ही सम्भल रहा है
बहुत दूर आ चुका है अब हर कोई
हर कोई...वक्त से आगे निकल रहा है।।
