जाँ लुटाकर सो गए
जाँ लुटाकर सो गए
झूल फाँसी तख्त पर वे वीर हँसकर सो गए।
फक्र से वे देश से सम्मान पाकर सो गए॥
एक जज्बा था रखा दिल देश प्यारा यह रहे।
देश की इज्जत बचाने जाँ लुटा कर सो गए॥
थी गुलामी चीरती दिल खून सबका खौलता।
काटने को यह गुलामी खूँ बहा कर सो गए॥
वीर माता वीरता की मूर्ति प्यारी थी खरी।
पुत्र जिसके देश के हित जाँ फिदाकर सो गए॥
रख तिरंगा हाथ में वे खा रहे थे गोलियाँ।
मूल्य आजादी चुकाकर तन जलाकर सो गए॥
रो रही थी भारती माँ बंधनों में थी बँधी।
काटने बंधन उसी के सर कटाकर सो गए॥
है 'प्रखर' बंदन उन्हीं का देश के जो लाल थे।
आसमाँ को ओढ़ धरती को बिछाकर सो गए॥