जाकर नहीं आये समय सुयोग
जाकर नहीं आये समय सुयोग
लौकी तोरई तक हुईं, औक्सीटोसिन युक्त।
लगता है हो जायेगा, मनुज धरा से लुप्त॥
मलयज तो सपना हुई, बहती मलज बतास।
दुर्गन्धित धरती हुई, दुर्गन्धित आकाश॥
अम्ल विषैले भूमि पर, बरसाता आकाश।
अरे पपीहे अब बता , कहाँ बुझेगी प्यास॥
गौरैया दिखती नहीं, हुए लापता गिद्ध।
नहीं सुरक्षित मनुज भी, तीर प्रदूषण बिद्ध॥
हिमगिरि से ऊँचा हुआ, पॊलीथिन गिरिश्रंग।
सुजला-सुफला हो रही, अब बंजर बदरंग॥
दूषित है वातावरण, बढ़ते जाते रोग।
जाग मनुज आये नहीं, जाकर समय सुयोग॥
