STORYMIRROR

कवि काव्यांश " यथार्थ "

Drama Tragedy Classics Crime Fantasy Inspirational Thriller Others

4  

कवि काव्यांश " यथार्थ "

Drama Tragedy Classics Crime Fantasy Inspirational Thriller Others

"जागो मित्र जागो" समय रहते जागो ।।

"जागो मित्र जागो" समय रहते जागो ।।

3 mins
385

"वीरता की मिट्टी, छल की फसल"

सोमनाथ का मंदिर लूट कर जब महमूद गजनबी अपनी एक लाख की सेना के साथ लौट रहा था, तब उसे क्या पता था कि भारत की मिट्टी में जन्मा एक बूढ़ा राजपूत, उसकी इस विजय-यात्रा को चुनौती देगा।

एक पड़ाव पर जैसे ही उसकी सेना रुकी, एक सौ पचास घुड़सवारों की टुकड़ी, हवा को चीरती हुई उसकी ओर बढ़ी। उस टुकड़ी का नेतृत्व कर रहा था एक सत्तर वर्षीय वृद्ध राजपूत – चेहरे पर झुर्रियाँ थीं, लेकिन आँखों में ज्वाला थी।

महमूद चकित था — इतनी छोटी सी टुकड़ी क्या कर सकती है उसकी एक लाख की विशाल सेना के सामने? उसने दूत भेजा, पूछा — "क्या चाहते हो?"

बूढ़ा राजपूत बोला —
"हम जानते हैं कि परिणाम मृत्यु ही है, पर याद रखो — अधर्म को जीवित रहते सहन करना भी पाप है।
हम युद्ध हारेंगे, पर आत्मा नहीं बेचेंगे।
हम मृत्यु चुनेंगे, पर परंपरा नहीं त्यागेंगे।"

और फिर…
डेढ़ सौ वीरों ने ऐसा कहर बरपाया कि हजारों घुटनों पर आ गए।
हर वार, एक घोषणा थी — *"धर्म के लिए मरना, सबसे बड़ी जीत है।"*
वो दल समाप्त हुआ, लेकिन उनकी अंतिम आवाज़ थी —
*"यदि हम हजार होते, तो इन लाखों से भी निपट लेते।"*

इस अद्भुत साहस से महमूद स्तब्ध रह गया। उसने समझा —
*"भारत को बल से नहीं जीता जा सकता…*
यहाँ के लोग वीरता में पर्वत समान हैं।
*इन्हें बाँटना होगा… जाति, धर्म, पंथ, वर्ण और वर्ग के नाम पर, बलगाना होगा, फूट डालना होगा, तभी इन पर विजय प्राप्त किया जा सकता है।*

और वहीं से आरंभ हुआ हमारे बीच छल का वह बीज, जो आज तक अंकुरित होता रहा।

*अंग्रेज आए — शिक्षा बदली, संस्कृति बदली, सोच बदली, हमारी हर ढाल बदली।*
*हमारी एकता, जो कभी हमारी ढाल थी — वह जातियों की तलवार बन गई।*

आज भी हम बँटे हैं 
दलित–सवर्ण, ऊँच–नीच, हिंदू–हिंदू के बीच, जात पात के भेदभाव में।
जहां किसी समय एक राजपूत डेढ़ सौ साथियों के साथ लाखों से टकरा जाता था, आज वहीं हम अपने ही लोगों से डरते हैं क्यों?

*यही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है… यही हमारे पतन की पहली जड़ है। आज अगर हम नहीं जागे तो आने वाला समय हमें सदा के लिए सुला देगा।*

*अब समय है उस वीर बूढ़े की विरासत को फिर से जीवित करने का,*
*जहां धर्म का अर्थ धर्मांतरण नहीं था,*
*जहां जाति का मतलब एकता तोड़ना नहीं था,*
*जहाँ वीरता का अर्थ था — अधर्म के विरुद्ध अडिग खड़ा रहना।*

क्योंकि इतिहास फिर दोहराएगा,
या तो हम एक होंगे, या फिर से हम छले जाएंगे।
ये हमको मिलकर सोचना है, इसका निर्णय हमें लेना है कि आज हम अपनें लिए कौन सा रास्ता चुनते हैं। फिर से छले जाए या बर्बाद हो जाए या जात पात हर भेदभाव को भुलाकर हम एक हो जाएं। निर्णय हम सबको एकजुट होकर लेना होगा।।

“संख्या नहीं, संकल्प तय करता है इतिहास की दिशा क्या होगी।”
“छल को पहचानो, खुद को जानों नहीं तो वही तुम्हें फिर से बाँट देगा।”




स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित रचना लेखक :- कवि काव्यांश "यथार्थ"
         विरमगांव, गुजरात।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama