जा रहा हूँ गाँव अपने....
जा रहा हूँ गाँव अपने....
मज़दूर हूँ, मजबूर नहीं
लौट रहा हूँ गाँव मैं अपने
शहर मे तेरे, महफूज नहीं
न रहने का ठिकाना है
न खाने को दाना है
खुद को तो जैसे तैसे
समझा लेते हैं लेकिन
मुन्ने को भूखा इन आँखों से
नहीं देखा जा रहा है
देख कर टीवी पे ख़बरें
गालीयाँ हमारे खातिर
खूब निकाल रहे हो
हाथ पीछे खेंचकर और
नजरें हमसे फेर कर तुम ही
तो अपने शहर से हमे निकाल
रहे हो
मज़दूर हूँ मजबूर नहीं
जा रहा हूँ मैं गाँव अपने
शहर में तुम्हारे महफूज नहीं हूँ.......
