इसलिए पसन्द है पलाश...!
इसलिए पसन्द है पलाश...!
जानते हो...!
पलाश का फूल सुर्ख लाल क्यूँ होता है ?
नही जानते...?
कभी इसको भी किसीे से इश्क़ हो गया था,
उसने इसके पोर - पोर पर
अपना राग धर दिया होगा
और चल दिया जंगल की ओर तप को
और यह ....
यह उसके प्रेम रंग में सुर्ख लाल हो गया...!
जानते हो.. !
पलाश को जंगल की आग क्यूँ कहते हैं..?
ये अपने जोगन की तलाश में जब
इधर - ऊधर भागता है तो
उसके पोर पोर से उसका प्रेम टपकता है
और फैल जाता है चारो तरफ...
और ये...
ये अपने प्रेम अगन को छुपा नहीं पाता है
उसके इस रंग से दिशा भी ललित हो जाती है...!
जानते हो.. !
मुझे पसन्द क्यूँ है पलाश ....?
इसका लाल रंग मुझे आकर्षित करता है
मैं भी ऐसे ही रंगना चाहती हूँ तुम्हारे रंग में...!
मेरे पोर पोर में तुम्हारा ही प्रेम अंकित हो
पर..!
मुझे ना भागना पड़े पलाश की तरह
तुम हो तो मैं जड़वत हो जाऊँ
तुम्हारे रंग में रंग कर पलाश बन जाऊँ...!