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Amit Kumar

Romance

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Amit Kumar

Romance

इश्क़ की पनाह!

इश्क़ की पनाह!

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यह चंद लम्हे

जो बिताए 

तेरी यादों के 

साये में

कुछ-कुछ 

महसूस किया मैंने

तुम्हें अपने 

आग़ोश में


कुछ दोस्तों की

सोहबत अब

उलझन सी

लगने लगी

चंद लम्हे जो

तन्हा जिये

तेरी पलकों के

साये में


उच्च कोटि का कवि

मेरा ह्रदय

होने को आतुर है

जाने कहाँ से

आ जाते है

शब्द होठों पर

खुद ब खुद

तेरे ज़िक्र की

पनाह में


मैं और भी

तन्हा बेज़ार

हुआ जाता हूँ

जब भी महफ़िल में

होता हूँ

दूर तुझसे

तेरी ज़ुल्फों के 

साये से


काश!

मैं तुझ को कह पाता

अपना हाल-ए-दिल

मिलकर रूबरू

तेरे शानों के

तकिये पर रखकर

अपना सर

अपने इश्क़ की 

पनाह और

तेरे हुस्न की बाहों में...

      


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