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ADITYA MISHRA

Romance

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ADITYA MISHRA

Romance

इश्क

इश्क

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अरसा हो गये देखे उसे,

अब नजर कहीं वो आता ही नहीं

कैसे कह दूं उसे भूला सुबह का,

दुबारा घर तो वो लौटा ही नहीं।


मैं यूं ही छोड़ आता हूं

अनजान राहों पर पता अपना,

मिल जाएगा उसे मेरा ठिकाना 

अगर सफ़र में वो निकला कहीं।


छोड़ दिया हूं मैं तलाश करना सुकून की अब ,

मालूम है मुझे इजतिरारें कभी खत्म होगी नहीं।


जमाने को भी एहसास है मेरी रूहानियत का,

पर उसने कभी मेरी आंखों में झांका ही नहीं।


इश्क की रिवायत नहीं है वजह मेरे मुंतजिर बनने की,

नये सफर पर जाने का अब मेरा कोई इरादा नहीं।


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