इश्क का मौसम
इश्क का मौसम


सोया हुआ था जो भौरा सदियों से
आज किसी के ख्वाब ने जगाया हैं
फिर खिल गई है मुरझाई कलियाँ
लगता हैं इश्क का मौसम आया है
गुनगुनाना तक भूल गया था जो
वो तो अब अक्सर गाने गाता है
चेहरे पर हमेशा उदासी रखने वाला
अब हर गम में भी मुस्कुराता है
महक रही हैं ये खुशबू हवाओं में
और हरियाली का मौसम छाया है
जो पत्ते बहा देते थे बौछारों को
उन पे ओंस के बूंदों का नशा छाया है
रात में छिप जाने वाले तारे भी
आजकल खूब ही टिमटिमाते हैं
मिलने के लिए इस मौसम से
वो टूटकर जमीन पे गिर जाते हैं
दूर दूर तक जाने वाले सारे पंछी
यहीं कहीं पेड़ों पर चहचहा रहे हैं
गुजारा था जिनका बस यहाँ वहाँ
वो भी अब घोसले बना रहे हैं
झूम रहे हैं सब मस्ती में देखो
बड़े दिनों बाद ये पल आया है
गम को भूल बैठीं दिशाएं सारी
लगता है इश्क का मौसम आया है।