इश्क-ऐ-वफ़ा
इश्क-ऐ-वफ़ा
दर्द कल भी था बस आज कम है,
तू नहीं इस बात का एक ग़म है,
रो लेते है कभी आँख चुरा कर,
पूछे कोई सवाल, कह देते है
संभल कर,
अनकही कहानियाँ है, रखी है
छुपा कर,
इन दिनों अकेले से है, भीतर से
थोड़े थके हुए है,
सच तो आज भी बोल सकते है हम,
बस कोई बिखर न जाये टूट कर,
इसी बात से डरे हुए है हम,
इश्क-ऐ-वफ़ा क्या है बरखुरदार?
वक़्त का वो तकाज़ा,
जब ज़मीन भी नसीब ना हो
और आसमान भी रो पड़े,
बस एक चाहत हो दिल में,
जो बुझ कर भी शमा रौशन करे।