गुरु-दक्षिणा
गुरु-दक्षिणा
हमे सब कुछ पाने की आस लगी रहती है,
सही शिक्षा की चिंगारी हर मन में जगी रहती है।
वक़्त का क्या कसूर, कर्म की गति निराली रहती है,
छू कर फैला है रोग, कुछ परिस्थितियाँ भी यादगार होती है।
पढाई-लिखाई बहोत की, लेकिन ज़िंदगी की कसौटी कठिन ही होती है,
मास्टर की वो शिख मुश्किल घड़ी में जट्ट से गिरने से बचा लेती है।
कदम-कदम पर है चुनौती, गुरु के आशीर्वाद की ज्योत हमेशा जलती रहती है,
न रुकेंगे हम, न हार कर बैठेंगे हम, ख्वाइश बस अविरत चलकर मंज़िल पाने की रहती है।