दिल की आवाज़
दिल की आवाज़
'एक वो भी दिन थे जब, हर चीज़ जैसे बिखरी लगती थी,
आज उसी वक़्त ने हमें सब कुछ सूत समेत लौटाया है।
वो बेवकूफ, नासमझ और बेसहारा हमें समझते थे,
आज मीठी-मीठी बाते बोल के वो ही रिश्ता बनता है।
कुछ कविता के अंश लिखे थे मैंने, उसे पढ़कर हँसी उड़ाते थे,
आज उसे ही पढ़कर, अच्छी और समझदारी वाली बातें करते है।
बस यही बैठे-बैठे उन्हीं शब्दों की ताकत का अंदाज़ा लगाया करते थे,
कहा तक बात जाती है, आज वो अपने ही नैनों से देखा करते है।
हमारे उस बीते हुए वक़्त पे वो मन ही मन मुस्कुराते और खुश भी हुआ करते थे,
आज वक़्त का चक्र घुमा, 'माँ-बाप', ईश्वर का आशीर्वाद और परिश्रम ने अपना असर दिखाया है।'