वो अक्सर ये कहते है।
वो अक्सर ये कहते है।
'मैं अभी भी बच्ची ही हूँ, वो अक्सर ये कहते है,
छोटी-छोटी बातों में थोड़ा ज़्यादा उलझ जाती हूँ
बड़ी बातों में कुछ कहे बिना ही समझ जाती हूँ
कोई कुछ कह दे, तो रो देती हूँ, अपनों के लिए कुछ भी कर जाती हूँ,
वो अक्सर ये कहते है।
मेरे अंदर छुपा मेरा बचपन वो रोज़ देखते है, नादान बच्चा ही समझते है,
तू कितना बोलती है? थकती नहीं? पूछते ही रहते है,
में अगर चुप हो जाऊँ तो सवाल भी बहुत करते है,
दिल से बच्ची और दिमाग से बहुत बड़ी है तू,
वो अक्सर ये कहते है।
मैं जैसी हूँ, जो भी हूँ, ख़ुशी से रोज़ गले लगते है,
तेरी सादगी, ये पावन मन ही तेरा असली श्रृंगार है,
मेरी हज़ार कमियों को वो रोज़ प्यार से निखारते है,
जीवन का असली आनंद हम साथ-साथ चल के ही उठाते है,
वो अक्सर ये कहते है।