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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा बाबा

Tragedy

4.6  

अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा बाबा

Tragedy

इसबार होली पर माँ की गमी है

इसबार होली पर माँ की गमी है

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इसबार होली पर माँ की गमी है,

दर्द माँ की ममता की कमी है,

खुशियां तो बहुत हैं घर के दामन में,

मगर कोई रंग नहीं है माँ के आंगन में,

पूर्व होली की हंसी का ठहाका,

इसबार होली पे साया नहीं माँ का।

रंग भरी होली और माँ की कमी है,

कैसे खेलूं रंग होली के माँ की गमी है।

माँ होती तो कचड़ी पापड़ पकवान बनाती,

होली का त्योहार माँ खूब गुजियाँ बनाती।

होली के दिन माँ के पैर छूता आशीर्वाद लेता,

कई रोज माँ के हाथ की बनी गुजियां खाता।

खुश होती माँ देख अपनी गाय को दूध देता,

माँ दूध का खोजा रोज बनाती जो शुद्ध होता।

पूर्व होली की जल भराव युक्त गलियाँ,

इसबार स्वच्छंदतावाद में सुंदर गलियाँ,

माँ खुश होती जब मिलती उसकी सहेलियाँ,

आंगन में होती खुशियां और मनती होलियाँ।

मगर इसबार माँ की नहीं है हंसी और बोलियाँ,

सिवाय आरजू के जिसके लिये टूटती सिसकियाँ।

इसबार माँ की यादों की होली मनायेंगे,

जीते जी माँ के नाम को अमर कर जायेंगे,

माँ जहाँ भी है छोड़कर यह दुनिया,

वहाँ तक माँ का नाम अमर कर जायेंगे।

मुबारक हो सबको होली की खुशियाँ।


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