मैं हूं बेबस मजदूर किसान
मैं हूं बेबस मजदूर किसान
सौ किलोग्राम चावल बेचकर पंद्रह किलोग्राम तेल खरीद ना सका
मैं हूं बेबस मजदूर किसान, साहब लोगों से यह बात कह ना सका
कीचड़ मे लेटकर, धूप को झेल कर
वर्षा मे ठिठुर कर, जिसे सींचा हमनें
ओ मेरा हो न सका
मै हूँ बेबस मजदुर किसान........
वर्षों मे जिससे उमीद लगाया, कौड़ियो के समान मूल पाया
उमीद का बाँध तोड़ कर नयन से धारा बह चला
क्यो महंगाई का भार सह ना सका
मै हूं बेबस मजदुर किसान.....
बेटियों ने उमीद जताकर कहा, किताबे घरl ले आना
पढ़ाएं या खिलाए यह फैसला कर ना सका
मै हूं बेबस मजदुर किसान.....