Sandeep pandey
Tragedy
सुबह ए शबनम गिर, नातवाँ शाख़ से ही फ़ना हो
सब्ज़ रंग था कभी
जगा हो गया।
हमदम तेरा हमराह दुश्मन हुआ, वक़्त बदला तेरा क्या से क्य
सा भी जो मेह-लख़ा हो गयामैं ही मे
निज़ाम ( सिस्...
होली (सूफ़ी ग...
जाति
ज़र्द पत्ते
क़ासिद
चर्चा ना कर ....
अब आए हो...
दो राहें
जानते हैं वे जल, जंगल, जमीन खोने का दर्द। जानते हैं वे जल, जंगल, जमीन खोने का दर्द।
बस रिकार्ड बाबू हमे समझो बना कर रख दिया नई शिक्षा नीति ने शिक्षक को बाबू बना दिया। बस रिकार्ड बाबू हमे समझो बना कर रख दिया नई शिक्षा नीति ने शिक्षक को बाबू बना ...
अब पहले जैसा भी कुछ नहीं रहा बस खालीपन है आंखों में सबके और दिल में घोर सन्नाटे . अब पहले जैसा भी कुछ नहीं रहा बस खालीपन है आंखों में सबके और दिल में ...
है वही दिन,रात का रोना। वही दरके हुए गाने, वही रूठा जमाना। है वही दिन,रात का रोना। वही दरके हुए गाने, वही रूठा जमाना।
कुछ टूट रहा था, कुछ छूट रहा था, लेखन से नाता टूट रहा था। कुछ टूट रहा था, कुछ छूट रहा था, लेखन से नाता टूट रहा था।
हौले हौले से बढ़ते ये कदम, और इनमें बहुत सारा तेरा ग़म। हौले हौले से बढ़ते ये कदम, और इनमें बहुत सारा तेरा ग़म।
एक शिकायत है तुझसे माँ,क्यों मुझे ब्याह दिया विदेस? एक शिकायत है तुझसे माँ,क्यों मुझे ब्याह दिया विदेस?
दूर देश से बेशकीमती,नक्काशीदार पिंजरा मंगवाया। दूर देश से बेशकीमती,नक्काशीदार पिंजरा मंगवाया।
सात दिनों के सात रंग में रंगी हुई इसकी प्रेम कहानी है। सात दिनों के सात रंग में रंगी हुई इसकी प्रेम कहानी है।
सवाल है सत्ता में बैठे हुये हुक्मरानों से, क्यों नहीं बाज आते हो फालतू बयानों से। सवाल है सत्ता में बैठे हुये हुक्मरानों से, क्यों नहीं बाज आते हो फालतू बयानों...
अब स्वतंत्र है वो तो पराश्रित मैं भी नहीं इस अर्थहीन पानी का अर्थ कुछ भी नहीं। अब स्वतंत्र है वो तो पराश्रित मैं भी नहीं इस अर्थहीन पानी का अर्थ कुछ भी नहीं...
दूर कहीं दिख रहा था एक अस्थि पिंजर, जिस पर रह गया था बस मॉंस चिपक कर। दूर कहीं दिख रहा था एक अस्थि पिंजर, जिस पर रह गया था बस मॉंस चिपक कर।
सर्वाधिक महत्वपूर्ण है पुस्तक का वह पृष्ठ, जहां मुद्रित पुस्तक का अधिकतम खुदरामूल्य। सर्वाधिक महत्वपूर्ण है पुस्तक का वह पृष्ठ, जहां मुद्रित पुस्तक का अधिकतम खुदर...
मेरे हिंदू मुस्लिम बच्चों को आपस में लड़ाया जाता है मेरे हिंदू मुस्लिम बच्चों को आपस में लड़ाया जाता है
काव्य कुसुम कानन में कविता, कलुषित हुई कहो कैसे? काव्य कुसुम कानन में कविता, कलुषित हुई कहो कैसे?
देखो रेल की पटरी के किनारे बनी ये बस्तियां, है उघड़े दरवाजे औ झांकती बंद खिड़कियां। देखो रेल की पटरी के किनारे बनी ये बस्तियां, है उघड़े दरवाजे औ झांकती बंद खिड़...
देखो उस पृथ्वी का मानव ने आज यह कैसा हाल किया है? देखो उस पृथ्वी का मानव ने आज यह कैसा हाल किया है?
आज मैं गाँव से लौटा हूँ। मन में गहन पीड़ा लिए बैठा हूँ। आज मैं गाँव से लौटा हूँ। मन में गहन पीड़ा लिए बैठा हूँ।
इस जीवन के बाद क्या पता, कौन सी राह पर फिर कहाँ मिलें? इस जीवन के बाद क्या पता, कौन सी राह पर फिर कहाँ मिलें?
आखिर क्यों लाखों परिवार न्याय से वंचित रह जाते है। आखिर क्यों लाखों परिवार न्याय से वंचित रह जाते है।