फिर भी मिट्टी के सूरत पर इतना घमंड किया है
फिर भी मिट्टी के सूरत पर इतना घमंड किया है
फिर भी,
मिट्टी के सूरत पर इतना घमंड किया है
चंद कागज़ के टुकड़ों को भर कर झोली मे
हर लोगों को अपने आगे ना पसंद किया है
वो कहते हैं -
मैं जनता हूँ कि नाटक का एक छोटा या बड़ा कलाकर हूँ मैं
रोल खत्म होते ही मिट्टी बन जाऊंगा मैं,
फिर भी,
हवा के झोंकों को भी अपने आगे मंद किया है
साहब,
मिट्टी के सूरत................
आगे कहते हैं -
इमारते ऊँची मेरी होंगी, गाड़ियां भी मेरी होगी
हकीकत क्या बयाँ करूं तुझसे
ये सब भी मिट्टी ही होंगी
फिर भी,
धाराओ को नौका से भंग किया है
साहब,
मिट्टी के सूरत..........