चक्रव्यूह
चक्रव्यूह
समय के चक्र व्यूह में फंस गया हूँ ,
मतलबियों को मैं पहचान गया हूँ ,
इस चक्र व्यूह से बाहर निकलने का,
रास्ता ढूंढने का प्रयास कर रहा हूँ ।
झूठी तारीफों का भोग बन गया हूँ ,
धन दौलत से पायमाल हो गया हूँ ,
मेरा साथ छोड़कर जो चले गये है,
उसका दर्द मैं महसूस कर रहा हूँ ।
मेरे मन का मंथन दिल से कर रहा हूँ ,
मेरी गलतीयों का अफसोस कर रहा हूँ ,
बदनामी का कलंक जो लगा है मुझ को,
उसको मिटाने की कशिश कर रहा हूँ ।
फ़रेबी लोंगो को मैं पहचान गया हूँ ,
गद्दार दोस्तों की मैं खोज कर रहा हूँ ,
पराये कभी अपने नहीं होते "मुरली",
उसका एहसास दिल से मैं कर रहा हूँ ।