ग्रीष्म का आगमन
ग्रीष्म का आगमन
बसंत की मौसम बिदा हो रही है अब,
तू मेरे प्यार की महक को भूलना नहीं,
मेरे रोम रोममें लहराउंगा ओ जानेमन,
तू पतझड़ का डर कभी रखना नहीं।
ग्रीष्म का आगमन भी हो गया है अब,
तू ग्रीष्म की धूप से घायल बनना नहीं,
तुझे सावन की घटामें रखूंगा ओ जानेमन,
तू मधुर मिलन करना कभी भूलना नहीं।
बनमें कोयल मधुर तराना गा रही है अब,
तू मन के मयूर को नचाना भूलना नहीं,
अंबुवा की डाली पे झूलाउंगा ओ जानेमन,
तू बहते पवनमें सरकना कभी भूलना नहीं।
ग्रीष्ममें प्यार की तुझे प्यास लगे तब,
तू प्यार की प्यास से कभी तड़पना नहीं,
तुझे प्यार का सागर मै बहाउंगा "मुरली",
तू प्यार का अमृत पीना कभी भूलना नहीं।

