शहादत
शहादत


सुखदेव, भगत सिंह, राजगुरु, आजादी के दीवाने थे,
हंस-हंस के झूले फांसी पर भारत मां के मस्ताने थे।
वह मेरे नहीं हैं जिन्दा हैं, वह अमर शहीद कहाएंगे,
वह प्यारे वतन पै निसार हुए, वह वीरों में मरदाने थे।
यह मरजी उस मालिक की थी, सब उसने खेल दिखाए हैं,
था लिखा उन्हें कुर्बान होना, फांसी के मुफ्त बहाने थे।
ब्रिटिश ने कहा माफी मांगो, शायद जिंदगानी हो जाए,
हंस हंस के सब ने जवाब दिया, नहीं हशर में दाग लगाने थे।
दुख दर्द से तूने पाला था, कुछ काम ना हम आए तेरे,
आजाद ना मां कर तुम को चले, मालिक के यई मनमाने थे।
सुखदेव, भगत सिंह, राजगुरु, आजादी के दीवाने थे
हंस-हंस के झूले फांसी पर भारत मां के मस्ताने थे।